Thursday, 12 March 2015

वह कौन है !!!!
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कौन है ---जो बसता है ,
मुझमे और तुझ में विश्वास की तरह !!
झरनों से गिरता है मद्धम मद्धम , 
नदियों में बहता है जीवन बन कर |
जिसने खारा कर डाला
पानी समुन्दर का और इन आँखों का--।
कौन है ---
जो पंछियों के सुर में गाता है गीत
सुबह सुबह का !!
गंध बन कर महकाता है हवाओं को !!
जिसने रंग भर दिए हैं सारे
लाल, गुलाबी, नीले, पीले क्यारी क्यारी में
जिसने बाँध दिए एक लय में
धरती, सूरज और चंदा ... !!!
जिसने बना डाले
ऊँचे ऊँचे पहाड़ और गहरी गहरी खाईयां
जिसने गति भर दी हमारे क़दमों में
जो शामिल है, सुबह सुबह की प्रार्थनाओं में---।
अचंभित हूँ कि ..जो चला रहा है कूंची कलम और जीवन
चुपके चुपके, इस विशाल कैनवास पर
दिखता नहीं है पर वही दिखता है हर जगह---।
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निशा ....

Sunday, 13 January 2013

कहानी

ऑफिस जाते जाते उसकी बेटी ने मार्केट से खरीदा एक कोट माँ के आगे रखा और बोली माँ प्लीज़ इसके बटन टाईट कर देना लूज़ हो गए हैं ..... झुझलाहट से माँ बोल गयी खीजते हुए ,,,,,, कुछ छोटे छोटे काम खुद भी कर लिया करो ....हार काम में बस माँ का आसरा ......
बेटी , ""तो क्या हुआ ""...............कहते हुए तेजी से गेट के बारह निकल गयी ....
माँ एक लंबी साँस लेकर फिर से घर काम में जुट गयी ...
उसे याद आया जब वह छटी क्लास में पढ़ती थी तो स्कूल की चूडीदार पैजामी के हुक टूट गए थे ,उसने माँ से घिघियाते हुए कहा था मम्मी ये हुक लगा दो इसके ...
तब उसकी माँ ने उस से ऐसे ही झुझलाते हुए कहा था ,,,,,,कि खुद करना सीखो .......
फिर उसने रोते रोते अपनी पैजामी के हुक टांके थे .उलटे सीधे ही सही .. मगर उसके बाद उसे सही तरीके से काम करने का तरीका आने लगा था |
मगर आज उम्रे के एक लंबे पड़ाव के बीतने के बाद भी वह भूली नहीं उस वक्त को ,,,,,जब माँ ने बेरहमी से उसे अकेले छोड़ दिया था
मगर आज बेटी बस तो "क्या हुआ "..... कहते हुए बाहर निकल गयी ...............
मेरी कलम से .........